आशुतोष कुमार सिंह
सरकारी टैक्स बचाने एवं अपने ओवर प्रोडक्शन को खपाने, व केमिस्टों को मालामाल करने के लिए दवा कंपनियां एक नायाब खेल-खेलती है। जिससे आम जनता की कौन पूछे खुद सरकार बेखबर है। इस खेल का नाम है दवाइयों पर ‘बोनस’ अथवा ‘डिल’ का चलन। यानी अगर केमिस्ट किसी कंपनी की एक स्ट्रीप खरीदता है तो नियम के हिसाब से उससे एक स्ट्रीप का पैसा लिया जाता हैं लेकिन साथ ही में उसे एक स्ट्रीप पर एक स्ट्रीप फ्री, या 10 स्ट्रीप पांच स्ट्रीप फ्री दे दिया जाता है। बिलिंग 10 स्ट्रीप की ही होती है। इससे एक ओर सरकार को टैक्स नहीं मिल पाता वहीं दूसरी ओर कंपनियां केमिस्टों को मालामाल कर देती हैं। और उपभोक्ता एम.आर.पी. पर दवाई खरीदने के लिए अभिशप्त रहता है। इस खेल को कुछ दवाइयों के उदाहरण के साथ समझा जा सकता है।
‘मैन काइंड’ कंपनी द्वारा निर्मित ‘अनवांटेड किट’ भी स्त्रीरोग में इस्तेमाल में आती है। इसकी एम.आर.पी भी 499 रूपये प्रति किट है। रिटेलर को होलसेलर 384.20 रूपये में देता है। लेकिन सबसे दुःखद आश्चर्य यह है कि एक किट पर मैनकाइंड कंपनी 6 किट फ्री में देती हैं। बाजार की भाषा में इसे एक पर 6 क डिल कहा जाता है। इस तरह से रिटेलर को एक किट 54.80 रूपये का पड़ा। अगर इस मूल्य को एम.आर.पी से तुलना करके के देखा जाए तो एक कीट पर रिटेलर को 444 रूपये की बचत हो रही है यानी लगभग 907.27 %।
इसी तरह सिपला कंपनी द्वारा निर्मित एम टी पी किट स्त्रीरोग में इस्तेमाल में आती है। इसकी एम.आर.पी 499 रूपये प्रति किट है। रिटेलर को होलसेलर 384.20 रूपये में देता है। लेकिन सबसे दुःखद आश्चर्य यह है कि इस एक किट को बेचने पर रिटेलर को कंपनी की ओर से पांच किट मुफ्त में दी जाती है, इस हिसाब से दुकानदार को यह दवा 64.03 रूपये का पड़ा। अगर इस मूल्य को एम.आर.पी से तुलना करके के देखा जाए तो एक कीट पर रिटेलर को 435 रूपये की बचत हो रही है यानी लगभग 780%।
एक प्रतिष्ठित कंपनी जिसका मार्केट में बहुत बढ़िया साख है, उसकी दवाइयों की गुणवत्ता को भी डाक्टर खूब तारीफ करते हैं। इस तरह से देश को लूटवा रही हैं तो देश को इस तरह की कंपनियों के खिलाफ क्या करना चाहिए!! इसी तरह मार्केट में दवाइयों पर प्रत्येक दवा कंपनी अपने हिसाब से बोनस देती है।
Is khel ka detail dene ke liye aapka dhanywaad...
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