शनिवार, 17 जून 2017

HELP MOTHERS (JANANI) TO NOURISH TALENT (PRATIBHA)

HELP MOTHERS (JANANI) TO NOURISH TALENT(PRATIBHA).

Every child is the most valuable for MOTHER (JANANI). First to earn livelihood, then to nourish TALENT (PRATIBHA). We are generating resources to serve the women behind human Talent.


OUR MISSION is to provide Training to Mothers (women) and children to earn their livelihood through participating in different MODEL PROJECTS of socio - economic growth and then to start earning of their own along with further inspiration and training to others in society.

OUR VISSION to educate Mothers and children to live with smile and help others to smile. We are going to start different educational, training & empowermental work to empower women.

OUR APPEAL to donate and adopt liabilities to fight sustainability for poor Mothers and children according to your choice and ability. All DONATIONS whether small and big be described in our forth coming website with end use details. 

बुधवार, 11 जून 2014

स्वस्थ भारत के लिए पीजेएसएस ने स्वास्थ्य मंत्री को लिखा पत्र


स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को हमारे राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह ने पत्र भेजकर यह सुझाव दिया है कि भारत को स्वस्थ बनाने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है। इसकी एक कॉपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भीे भेजी गयी। 








पत्रांक........                                                                          दिनांकः 
26:05: 2014                                                                                             

                       
सेवा में,                                                                      
डॉ हर्षवर्धन जी, स्वास्थ्य मंत्री, भारत सरकार
नई दिल्ली

     विषयः 'स्वस्थ भारत विकसित भारत' के सपने को साकार करने की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
      भाई साहब प्रणाम, सर्वप्रथम हिन्दुस्तान की बागडोर संभालने के लिए स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान से जुड़े तमाम राष्ट्रभक्तों की ओर से आपको ढ़ेर सारी शुभकामना देता हूं। पूरे राष्ट्र को आपसे बहुत उम्मीद है। हमें भी है। इसी परिप्रेक्ष्य में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर उभरे अपने विचार आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
      हिन्दुस्तान बीमारी के उस कगार पर खड़ा है, जहां पर एक अच्छे डॉक्टर की सख्त जरूरत है। यदि समय रहते हिन्दुस्तान के बिगड़ते स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा गया तो निश्चित रूप से विकसित राष्ट्र बनने के हिन्दुस्तानियों के सपने को साकार नहीं किया जा सकेगा।
हम चाहते हैं कि देश को स्वस्थ बनाया जाए ताकि राष्ट्र विकसित बन सके
      किसी भी राज्य के विकास को समझने के लिए नागरिक-स्वास्थ्य को समझना आवश्यक होता है। नागरिकों का बेहतर स्वास्थ्य राष्ट्र की प्रगति को तीव्रता प्रदान करता है। दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतनशील व बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रयत्नशील रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से अपने देश में स्वास्थ्य चिंतन न तो सरकारी प्राथमिकता में है और न ही नागरिकों की दिनचर्या में। हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य के प्रति नागरिक तो बेपरवाह है ही, हमारी सरकारों के पास भी कोई नियोजित ढांचागत व्यवस्था नहीं है जो देश के प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य का ख्याल रख सके।
      आपको तो मालूम ही होगा कि किस तरह से स्वास्थ्य के नाम पर चहुंओर लूट मची हुई है। आम जनता तन, मन व धन के साथ-साथ सुख-चैन गवां कर चौराहे पर किमकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। घर की इज्जत-आबरू को बाजार में निलाम करने पर मजबूर है। सरकार के लाख दावों के बावजूद देश का भविष्य कुपोषण का शिकार है, देश की जन्मदात्रियां रक्तआल्पता (एनिमिया) के कारण मौत की नींद सो रही हैं।
दरअसल आज हमारे देश की स्वास्थ्य नीति का ताना-बाना बीमारों को ठीक करने के इर्द-गिर्द घूम रही है। जबकि नीति निर्धारण बीमारी को खत्म करने पर केन्द्रित होनी चाहिए। एक पोलियो से मुक्ति पाकर हम फूले नहीं समा रहे हैं, जबकि इस बीच कई नई बीमारियां देश को अपने गिरफ्त में जकड़ चुकी हैं।
मुख्यतः आयुर्वेद, होमियोपैथ और एलोपैथ पद्धति से बीमारों का इलाज होता है। हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा एलोपैथिक पद्धति अथवा अंग्रेजी दवाइयों के माध्यम से इलाज किया जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि अंग्रेजी दवाइयों से इलाज कराने में जिस अनुपात से फायदा मिलता है, उसी अनुपात से इसके नुकसान भी हैं। इतना ही नहीं महंगाई के इस दौर में लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। ऐसे में बीमारी से जो मार पड़ रही है, वह तो है ही साथ में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। इन सभी समस्याओं पर ध्यान देने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य की समस्या राष्ट्र के विकास में बहुत बड़ी बाधक है।
क्या होना चाहिए
ऐसे में देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखने के लिए सरकारी नीति बननी चाहिए न कि बीमार को स्वस्थ करने के लिए। ऐसे उपाय पर ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे कोई बीमार ही न हो। इस परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य नीति बनाते समय सरकार को कुछ खास बिन्दुओं पर ध्यान जरूर देना चाहिए।
देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को नागरिकों के उम्र के हिसाब से तीन भागों में विभक्त करना चाहिए। 0-25 वर्ष तक, 26-59 वर्ष तक और 60 से मृत्युपर्यन्त। शुरू के 25 वर्ष और 60 वर्ष के बाद के नागरिकों के स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था निःशुल्क सरकार को करनी चाहिए। जहाँ तक 26-59 वर्ष तक के नागरिकों के स्वास्थ्य का प्रश्न है तो इन नागरिकों को अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाना चाहिए। जो कमा रहे हैं उनसे बीमा राशि का प्रिमियम भरवाना चाहिए, जो बेरोजगार है उनकी नौकरी मिलने तक उनका प्रीमियम सरकार को भरना चाहिए। 
शुरू के 25 वर्ष नागरिकों को उत्पादक योग्य बनाने का समय है। ऐसे में अगर देश का नागरिक आर्थिक कारणों से खुद को स्वस्थ रखने में नाकाम होता है तो निश्चित रूप से हम जिस उत्पादक शक्ति अथवा मानव संसाधन का निर्माण कर रहे हैं, उसकी नींव कमजोर हो जायेगी और कमजोर नींव पर मजबूत इमारत खड़ी करना संभव नहीं होता। किसी भी लोक कल्याणकारी राज्य-सरकार का यह महत्वपूर्ण दायित्व होता है कि वह अपने उत्पादन शक्ति को मजबूत करे।
अब बारी आती है 26-59 साल के नागरिकों पर ध्यान देने की। इस उम्र के नागरिक सामान्यतः कामकाजी होते हैं और देश के विकास में किसी न किसी रूप से उत्पादन शक्ति बन कर सहयोग कर रहे होते हैं। चाहे वे किसान के रूप में, जवान के रूप में अथवा किसी व्यवसायी के रूप में हों कुछ न कुछ उत्पादन कर ही रहे होते हैं। जब हमारी नींव मजबूत रहेगी तो निश्चित ही इस उम्र में उत्पादन शक्तियाँ मजबूत इमारत बनाने में सक्षम व सफल रहेंगी और अपनी उत्पादकता का शत् प्रतिशत देश हित में अर्पण कर पायेंगी। इनके स्वास्थ्य की देखभाल के लिए इनकी कमाई से न्यूनतम राशि लेकर इन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाने की जरूरत है। जिससे उन्हें बीमार होने की सूरत में इलाज के नाम पर एक रूपये भी अलग से खर्च नहीं करना पड़े।
अब बात करते हैं देश की सेवा कर चुके और बुढ़ापे की ओर अग्रसर 60 वर्ष की आयु पार कर चुके नागरिकों के स्वास्थ्य की। इनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी भी सरकार को पूरी तरह उठानी चाहिए। और इन्हें खुशहाल और स्वस्थ जीवन यापन के लिए प्रत्येक गांव में एक बुजुर्ग निवास खोलने चाहिए जहां पर गांव भर के बुजुर्ग एक साथ मिलजुल कर रह सकें और गांव के विकास में सहयोग भी दे सकें।
यह तो हुई ढांचागत सुधार की बात। कुछ और भी महत्वपूर्ण बिन्दु हैं जिसपर अमल बहुत जरूरी है।
1- प्रत्येक गाँव में सरकारी स्वास्थ्य पर्यवेक्षक की नियुक्ति हो जो गांव के स्वास्थ्य की स्थिति पर नज़र रखे।
2-प्रत्येक गाँव में सरकारी दवा की दुकान
3-प्रत्येक स्कूल में योगा शिक्षक के साथ-साथ स्वास्थ्य शिक्षक की बहाली
4-प्रत्येक गांव में वाटर फिल्टरिंग प्लांट जिससे पेय योग्य शुद्ध जल की व्यवस्था हो सके
5--हर घर-आंगन में तुलसी का पौधा लगाने हेतु नागरिकों को जागरूक करने के लिए   कैंपेन किया जाए।
6- खेल के विकास हेतु प्रत्येक गांव में व्यवस्थित प्लेग्राउंड की व्यवस्था हो
7- सभी कच्ची-पक्की सड़कों के बगल में पीपल व नीम के पेड़ लगाने की व्यवस्था हो
उपरोक्त बातों का सार यह है कि स्वास्थ्य के नाम पर किसी भी स्थिति में नागरिकों पर आर्थिक दबाव नही आना चाहिए। और इसके लिए यह जरूरी है कि देश में पूर्णरूपेण 'कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा' उपलब्ध कराई जाए।
यदि उपरोक्त ढ़ांचागत व्यवस्था को हम नियोजित तरीके से लागू करने में सफल रहे तो निश्चित ही हम स्वस्थ भारत विकसित भारत का सपना बहुत जल्द पूर्ण होते हुए देख पायेंगे। गौरतलब है कि प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान पिछले तीन वर्षों से चला रही है, जिसके अंतर्गत कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन व जेनरिक दवा लाइए पैसा बचाइए कैंपेन चलायी जा रही है।
      उपरोक्त सुझाव को देते हुए हम इस बात के लिए आश्वस्त भी हैं कि नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी की सरकार इन सुझावों पर अमल जरूर करेगी। हमें पूर्ण विश्वास है कि 'स्वस्थ भारत विकसित भारत' के सपने को पूर्ण करने में किसी भी सूरत में अपनी सहभागिता से आप पीछे नहीं हटेंगे।
सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा में प्रतीक्षारत

आशुतोष कुमार सिंह


राष्ट्रीय संयोजक, प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान


शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

कंट्रोल एम.एम.आर.पी. कैंपन का असर: कैंसर की दवा-मूल्यों में 64 प्रतिशत की कटौती



प्रतिभा जननी सेवा संस्थान द्वारा स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान के तहत चलाए जा रहे कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन का असर दिखने लगा है। कैंसर की दवा बनाने वाली जानी मानी फार्मा कंपनी सिपला ने कैंसर की अपनी तीन दवाओं की कीमत 64 फीसदी घटाने की घोषणा की है। एरलोसिप, डोसीटैक्स, केपगार्ड नामक कैंसर की ये तीन दवाएं फेफड़े, मस्तिष्क, स्तन और शरीर में पनपने वाले दूसरे कई तरह के कैंसर के इलाज में काम आती हैं। एरलोसिप की 30 गोलियां अब 9000 रुपए में उपलब्ध होंगी जिनकी कीमत पहले 27,000 रुपए थी। फेफड़ों, मस्तिष्क और स्तन कैंसर में काम आने वाली दवा डोसीटैक्स पहले 3300 रुपए की थी लेकिन अब इसकी कीमत 1,650 होगी। इस फैसले की घोषणा करते हुए सिपला के महानिदेशक वाईके हामिद ने मीडिया को बताया कि, ''सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में अपना सहयोग करते हुए सिपला एचआईवी और मलेरिया ही नहीं बल्कि कैंसर की दवाओं की कीमत भी घटा दी है।''
सिपला के इस फैसले का प्रतिभा जननी सेवा संस्थान ने स्वागत किया है। संस्थान के नेशनल-को-आर्डिनेटर आशुतोष कुमार सिंह ने कहा कि, आम लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने की दिशा सिपला का यह कदम महत्वपूर्ण है। जरूरत इस बात की है कि ये कंपनियां बाकी जरूरी दवाइयों की एम.आर.पी. भी कम करें ताकि आम लोगों को और सहुलियत मिल सके।
गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान कंट्रोल मेडिसिन मैक्सिमम रिटेल प्राइस कैंपेन चला रही है और इस अभियान के तहत पूरे देश में महंगी दवाइयों को लेकर आम जनता को जागरूक कर रही है। इस कैंपेन का ही नतीजा है कि सरकार ने जल्दीबाजी में पूरे देश के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जेनरिक दवाइयां उपलब्ध कराने की घोषणा की है। नेशनल असेन्सियल मेडिसिन लिस्ट की संख्या 74 से बढ़ाकर 348 करने जा रही है। दवाइयों का मूल्य नियंत्रण व निर्धारण करने वाली सरकारी नियामक एन.पी.पी.ए ने भी राष्ट्रीय हेल्पलाइन नम्बर शुरू किया।
(प्रेस विज्ञप्ति/ 10.11.12)

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

दवाइयों में बोनस का खेल!



आशुतोष कुमार सिंह

सरकारी टैक्स बचाने एवं अपने ओवर प्रोडक्शन को खपाने, व केमिस्टों को मालामाल करने के लिए दवा कंपनियां एक नायाब खेल-खेलती है। जिससे आम जनता की कौन पूछे खुद सरकार बेखबर है। इस खेल का नाम है दवाइयों पर ‘बोनस’ अथवा ‘डिल’ का चलन। यानी अगर केमिस्ट किसी कंपनी की एक स्ट्रीप खरीदता है तो नियम के हिसाब से उससे एक स्ट्रीप का पैसा लिया जाता हैं लेकिन साथ ही में उसे एक स्ट्रीप पर एक स्ट्रीप फ्री, या 10 स्ट्रीप पांच स्ट्रीप फ्री दे दिया जाता है। बिलिंग 10 स्ट्रीप की ही होती है। इससे एक ओर सरकार को टैक्स नहीं मिल पाता वहीं दूसरी ओर कंपनियां केमिस्टों को मालामाल कर देती हैं। और उपभोक्ता एम.आर.पी. पर दवाई खरीदने के लिए अभिशप्त रहता है। इस खेल को कुछ दवाइयों के उदाहरण के साथ समझा जा सकता है।
      ‘मैन काइंड’ कंपनी द्वारा निर्मित ‘अनवांटेड किट’ भी स्त्रीरोग में इस्तेमाल में आती है। इसकी एम.आर.पी भी 499 रूपये प्रति किट है। रिटेलर को होलसेलर 384.20 रूपये में देता है। लेकिन सबसे दुःखद आश्चर्य यह है कि एक किट पर मैनकाइंड कंपनी 6 किट फ्री में देती हैं। बाजार की भाषा में इसे एक पर 6 क डिल कहा जाता है। इस तरह से रिटेलर को एक किट 54.80 रूपये का पड़ा। अगर इस मूल्य को एम.आर.पी से तुलना करके के देखा जाए तो एक कीट पर रिटेलर को 444 रूपये की बचत हो रही है यानी लगभग 907.27 %।
      इसी तरह सिपला कंपनी द्वारा निर्मित एम टी पी किट स्त्रीरोग में इस्तेमाल में आती है। इसकी एम.आर.पी 499 रूपये प्रति किट है। रिटेलर को होलसेलर 384.20 रूपये में देता है। लेकिन सबसे दुःखद आश्चर्य यह है कि इस एक किट को बेचने पर रिटेलर को कंपनी की ओर से पांच किट मुफ्त में दी जाती है, इस हिसाब से दुकानदार को यह दवा 64.03 रूपये का पड़ा। अगर इस मूल्य को एम.आर.पी से तुलना करके के देखा जाए तो एक कीट पर रिटेलर को 435 रूपये की बचत हो रही है यानी लगभग 780%। 

     एक प्रतिष्ठित कंपनी जिसका मार्केट में बहुत बढ़िया साख है, उसकी दवाइयों की गुणवत्ता को भी डाक्टर खूब तारीफ करते हैं। इस तरह से देश को लूटवा रही हैं तो देश को इस तरह की कंपनियों के खिलाफ क्या करना चाहिए!! इसी तरह मार्केट में दवाइयों पर प्रत्येक दवा कंपनी अपने हिसाब से बोनस देती है।

प्रतिभा जननी सेवा संस्थान ने की दवा दुकानदारों से हड़ताल पर न जाने की अपील

प्रेस विज्ञप्ति-15.10.12

प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के नेशनल संयोजक आशुतोष कुमार सिंह ने महाराष्ट्र के दवा दुकानदारों से अपील की है कि वे जनहित में हड़ताल पर जाने की अपनी हठ को छोड़ दें। प्रशासन से बातचीत करें। लोगों को सुविधा देना आपका परम कर्तव्य है। अपने कर्तव्य-पथ से भटके नहीं।
उन्होंने प्रेस-विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि 'दवा दुकानदारों का तीन दिनों के लिए हड़ताल पर जाना दुःखद है। अगर एफ.डी.ए दवा दुकान पर फार्मासिस्ट को अनिवार्य रूप से रहने की बात कह रहा है तो इसमें गलत क्या है। इतने सालों से दवा दुकानदारों ने अपने मन की ही तो की है और अब सरकार पर दबाव बना है तो उसने अपने बीमार सिस्टम को दुरूस्त करने का काम शुरू किया है। जनहित में केमिस्टों को सरकार के इस पहल के साथ जाना चाहिए। अरे भाइयों आपका राष्ट्र स्वस्थ होगा तो आप भी स्वस्थ रहेंगे। आपलोग क्या चाहते हैं कि आपका पड़ोसी बीमार रहे। ऐसे में क्या आप चैन से सो सकते हो...नहीं न! तो आइए न... भटक क्यों रहे हैं! स्वस्थ भारत के निर्माण में अपना योगदान सुनिश्चित करें। आपलोगों पर भारत को स्वस्थ रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है'। ज्ञात हो की प्रतिभा जननी सेवा संस्थान " स्वस्थ्य भारत विकसित भारत " अभियान चला रही है।

दवा दुकानदारों से सरकारी रेट लिस्ट मांगे

                                                 आम जनता से अपील


सरकारी नियम यह कहता हैं कि प्रत्येक दवा विक्रेता के पास सरकार द्वारा दी गयी सरकारी रेट लिस्ट होता है और उपभोक्ता दवा खरीदते समय उस रेट लिस्ट को केमिस्ट से मांग सकता है ताकि उसे मालूम चले की उसे जो दवाइयां दी गयी हैं उसका वास्तविक मूल्य क्या है? तो क्या आपने कभी सरकारी रेट लिस्ट दवा दुकानदार से मांगा है...अगर नहीं तो आज से ही मांगना शुरू कीजिए...अगर दुकानदार यह लिस्ट नहीं देता 

हैं तो इसके लिए आप नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथोरिटी में शिकायत कर सकते हैं। अथवा आप अपने जीला के ड्रग इस्पेक्टर, ड्रग कंट्रोलर से भी शिकायत कर सकते हैं। 1800111255 एन.पी.पी.ए का हेल्पलाइन नम्बर है जिसपर आप कॉल कर के इसके बारे में जानकारी मांग सकते हैं। ध्यान रहे कि सरकार ने 74 जरूरी दवाइयों की सेलिंग प्राइस तय कर रखी है। इस मूल्य से ज्यादा पर कोई भी दवा कंपनी अपनी दवा नहीं बेच सकती है। अगर कोई कंपनी इस नियम का उलंघन करती हैं तो उसके खिलाफ डीपीसिओ-1995 के में असेंशियल कोमोडिटिज एक्ट,1955 के सेक्सन सात के तहत डीपीसीओ के नियमों को तोड़ने हेतु कम से कम तीन महीने की सजा जो बढ़कर सात साल तक की हो सकती है और इतना ही नहीं इसका उलंघन करने वाले पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।


                                                                                                                 आशुतोष कुमार सिंह
                                                                                       नेशनल को-आर्डिनेटर, प्रतिभा जननी सेवा संस्थान, मुम्बई
                                                                                                        ईमेल-pratibhajanani@gmail.com

देश को लूट रही दवा कंपनियों पर क्रिमनल केस दर्ज करे सरकार

                                       सरकार से अपील


बियोंड हेडलाइन्स पर आज प्रकाशित खबर में बताया गया है कि देश की लगभग 700 दवा कंपनियों के खिलाफ एन.पी.पी.ए पिछले कई वर्षों से दवाइयों के मूल्य ज्यादा लिखने के लिए आर्थिक दंड लगाते आया है। ताजा आकड़ों के हिसाब से ओवरचारजिंग के 871 मामलों में दवा कंपनियों पर कुल 2574 करोड़ 95 लाख 84 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया है। जिसमें महज 234 करोड़ 72 लाख 61 हजार रूपये सरकार वसूल पायी है। सरकार के इस पहल से यह स्पष्ट हो गया है कि ये कंपनियां देश को लगातार 

आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है, जिससे देश को आर्थिक नुकसान पहुंच रहा है व साथ ही मंहगी दवाइयों के 

कारण लाखों लोग मौत के गाल में समा रहे हैं। लगभग 3 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ पा रही है। उपरोक्त सभी बातों को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो यह बहुत बड़ा अपराध है। इस अपराध के 

लिए मुनाफाखोर दवा कंपनियों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज कर उन्हें दंड देने की व्यवस्था सरकार 

करे। नहीं तो एक और जनआंदोलन के लिए तैयार हो जाए।

( आशुतोष कुमार सिंह, नेशनल को-आर्डिनेटर, प्रतिभा जननी सेवा संस्थान)
नोटः 5.10.2012 को जारी