शुक्रवार, 29 जून 2012




प्रतिभा जननी सेवा संस्थान
       
( SAVE MOTHER SAVE FUTURE )


माँ शब्द अपने आप में पूरी सृष्टि को समेटे हुए है। इस शब्द की ध्वनि जब कानों में पड़ती है तो ऐसा लगता है मानो ममता के सागर से एक मीठी-सी लहर उठ रही है और कानों से टकराकर कह रही है-- मैं माँ हूँ। तुम्हे जन्म देने वाली। तुम्हे पालने वाली। तुम्हारे हर दुख-दर्द को महसूस करने वाली। मेरे आँचल की छांव इतनी लम्बी है कि सूरज का ताप भी तुम्हें नहीं तपा पायेगा। बारि की बूदें भी तुम्हें नहीं भिगो पायेंगी। बिजली की चिंगारी भी मेरे आँचल से टकराकर वापस चली जायेगी।
तुम तो मेरी कल्पना हो और हकीकत भी। मैं एक स्त्री हूं न! कई रिश्तों को जीने के बाद माँ बनी हूँ। मैं सृजन करती हूं। मैं रचती हूँ। मुझसे ही तुम हो। मुझमें ही तुम हो। मेरी रचना के फल हो तुम।
           मेरी कोख में पलने वाला शिशु कुदरती प्रतिभाशाली होता है, लेकिन मेरी परिस्थितियां तय करेंगी कि मेरा शिशु प्रतिभाशाली होगा या नही। मेरी ही परिस्थितियां मेरे बच्चे के भविष्य को तय करेंगी। हर माँ की यही ख्वाहिश होती है कि उसका बच्चा विश्व का एक सम्मानित नागरिक बने।
           मुख्तसरन इस प्रतिभा-जननी को वो तमाम सहायक परिस्थितियाँ मुहैया कराई जाएं जिससे वो खूबसूरत राष्ट्र का निर्माण कर अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति कर सके। इस प्रतिभा-जननी को सहायक परिस्थितियाँ सुलभ कराने हेतु ही प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान के निर्माण की जरूरत पड़ी।
अब हम अपनी बात मुनव्वर राना के इस शेर से खत्म करना चाहेंगे-
ऐ अंधेरे देखले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।।